"माँ-बाप कौन हैं?"
माँ-बाप
इस धरा पर हमारे अस्तित्व का आशय-प्रयोजन हैं
ये
एक ऐसे मुसाफ़िर हैं जो हमारा कभी साथ नहीं छोड़ते
ये वो सहनशीलता की मूर्ति हैं जो सदैव अखंड रहती है
ये वो अभेद्य कवच हैं जो हमारी रक्षा करती है
ये वो जौहरी हैं जो शीशे को भी तराश कर हीरा बना देते हैं
ये वही प्रेरणा शक्ति की श्रोत्र हैं जो अनवरत है
इनके ही स्नेह रूपी छत्रछाया में हम पले-बढे हैं
ये विषम परिस्थियों को सम बना देते हैं
ये ही तो हैं जो हमारे रगरग से वाक़िफ़ हैं
जिन्होंने हमें कभी किसी चीज़ की कोई कमी नहीं होने दी
हाँ! ये वही शख़्स हैं
जिन्हे हमने सबसे ज्यादा दुःख दिए
ये वो सहनशीलता की मूर्ति हैं जो सदैव अखंड रहती है
ये वो अभेद्य कवच हैं जो हमारी रक्षा करती है
ये वो जौहरी हैं जो शीशे को भी तराश कर हीरा बना देते हैं
ये वही प्रेरणा शक्ति की श्रोत्र हैं जो अनवरत है
इनके ही स्नेह रूपी छत्रछाया में हम पले-बढे हैं
ये विषम परिस्थियों को सम बना देते हैं
ये ही तो हैं जो हमारे रगरग से वाक़िफ़ हैं
जिन्होंने हमें कभी किसी चीज़ की कोई कमी नहीं होने दी
हाँ! ये वही शख़्स हैं
जिन्हे हमने सबसे ज्यादा दुःख दिए
जिन्हे हम हमेशा दर्द देते हैं
अनादर-अपमान और धोखे भी दिए हैं
जो हमारे लिए सिर्फ एक कल्पवृक्ष के समान हैं
आखिर क्यूँ हम इनके अरमानों का गाला घोंटते हैं?
आखिर क्यूँ हम अपने उत्तरदायित्व निभाने में अक्षम हैं?
क्षणिक सुख के लिए वर्षों का प्यार भूल जाते हैं
कमी कहाँ रह गई थी?
क्या इनके परवरिश में कमी थी?
नहीं!!!
कमी हमारे ही अंदर है
हम ही उन्हें आज तक समझ नहीं पाये
जिन्होंने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया हमारे लिए
अपनी एक-एक जमा पूंजी हम पर निवेश कर दिया
एक ऐसा बाग़बान जो ज़िन्दगीभर निगरानी ही करता रहा
हमें समृद्ध बनता रहा
और हम ही उनका तिरस्कार करते रहते हैं
अनादर-अपमान और धोखे भी दिए हैं
जो हमारे लिए सिर्फ एक कल्पवृक्ष के समान हैं
आखिर क्यूँ हम इनके अरमानों का गाला घोंटते हैं?
आखिर क्यूँ हम अपने उत्तरदायित्व निभाने में अक्षम हैं?
क्षणिक सुख के लिए वर्षों का प्यार भूल जाते हैं
कमी कहाँ रह गई थी?
क्या इनके परवरिश में कमी थी?
नहीं!!!
कमी हमारे ही अंदर है
हम ही उन्हें आज तक समझ नहीं पाये
जिन्होंने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया हमारे लिए
अपनी एक-एक जमा पूंजी हम पर निवेश कर दिया
एक ऐसा बाग़बान जो ज़िन्दगीभर निगरानी ही करता रहा
हमें समृद्ध बनता रहा
और हम ही उनका तिरस्कार करते रहते हैं
जब इन्हे हमारी सबसे ज्यादा ज़रूरत होती है
तो हम इन्हे अस्वीकार कर देते हैं
किस अपराध की सजा सज़ा इन्हे देते हैं
यही तो हमारे संरक्षक हैं, सर्वस्व हैं
हम इनके एक ऐसे ऋणी हैं जो कभी भी ऋण नहीं पूरा कर सकता
माँ- बाप की महत्ता जाननी हो तो किसी अनाथ से पूछो-
माँ-बाप कौन हैं?
अरे माँ-बाप तो अतुल्य हैं
रुपयों से इनकी कीमत आंकते क्यूँ हो?
अगर कीमत होती इनकी तो क्या ये बाज़ार में ना बिकते!
यही तो हमारे संरक्षक हैं, सर्वस्व हैं
हम इनके एक ऐसे ऋणी हैं जो कभी भी ऋण नहीं पूरा कर सकता
माँ- बाप की महत्ता जाननी हो तो किसी अनाथ से पूछो-
माँ-बाप कौन हैं?
अरे माँ-बाप तो अतुल्य हैं
रुपयों से इनकी कीमत आंकते क्यूँ हो?
अगर कीमत होती इनकी तो क्या ये बाज़ार में ना बिकते!
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