शून्य संवेदना
कभी गूंजती थी संवेदनाओं की स्पंदन
कभी गठित थे रिश्तों के बंधन
कभी थे उन्मुक्त विचारों का आशियाँ
आह्लादित ह्रदय और पुल्कित मन
कभी गठित थे रिश्तों के बंधन
कभी थे उन्मुक्त विचारों का आशियाँ
आह्लादित ह्रदय और पुल्कित मन
पर आज
ओढ़ रखे हैं निस्पृहता का कफ़न
लगा रखे हैं संकीर्णता के पहरे
निस्पंद हैं भाव
ओढ़ रखे हैं निस्पृहता का कफ़न
लगा रखे हैं संकीर्णता के पहरे
निस्पंद हैं भाव